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सोनचिर्या के बारे में
सोन प्रतीक है हमारी सोने जैसी दमकती समृद्ध विरासत का, चिरैया संकेत है उस संरक्षण का जो समस्त श्रष्टि को चाहिए l
ऐसी ही है हमारी लोक संस्कृति, ऐसी ही हैं हमारी लोक कलायें l जो अनंत काल से हमारी संस्कृति की सबसे सशक्त अभिव्यक्ति हैं, सबसे पवित्र वाहक हैं l समाज में जो कुछ भी घटता है लोक ने उसके सकारात्मक पक्ष को ग्रहण किया और एक लम्बे चिंतन से उपजी अपनी सोच में उसे ढालकर, समाज को वापस लौटा दिया – कभी गीत बनकर, कभी कोई लोक परम्परा बनकर, कभी किसी कहावत, किसी लोककथा के रूप में, तो कभी लोक मंचन, लोक नाट्य, लोक नृत्य के रूप में l लोक स्वीकार्यता है एक चिंतन की एक परम्परा के अनुशीलन की, जिसमें जीवन की शिक्षा है, समझ है, रस है, सरोकार है l इस्न्मे शास्त्रीयता का कोई बंधन नहीं l मन की उन्मुक्त उड़ान है l
“भारत की लोक संस्कृति इसकी प्राण वायु है | अपनी इसी प्राणवायु को आधुनिकता के साथ कदम से कदम मिलाकर चलाने की अत्यंत आवश्यकता है |”

मालिनी अवस्थी
आज के समय में आपके कानों में लोक संगीत का जो स्वर सबसे मुखर होकर गूंजता है, लोक संगीत को फिर से आंगन की किलकारी बनाने और भारत की पावन संस्कृति की डोर से युवाओं को बांध लाने में जिनकी सर्वाधिक महती भूमिका है, एक ऐसा चेहरा जो भारत की महान लोक परम्पराओं का पर्याय है l
पदमविभूषण विदुषी गायिका स्वर्गीय गिरिजादेवी जी की पट्टशिष्या मालिनी अवस्थी ने कई गुरुओं से संगीत की विधिवत शिक्षा ली l शास्त्रीय संगीत का क ख ग सीखने के बाद माटी की सुगंध के साथ उसका सुंदर संतुलन जिन्होंने साध दिखाया l कजरी, दादरा, सोहर, बन्ना, झूला और होली, चैती हो या निर्गुण – इन पुरानी गायन शैलियों की नई धज में प्रभावी प्रस्तुति देकर जिन्होंने लोक संगीत में नए प्रयोगों को प्रमुखता दी l
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