सोनचिरैया के बारे में

सोन प्रतीक है हमारी सोने जैसी दमकती समृद्ध विरासत का, चिरैया संकेत है उस संरक्षण का जो समस्त श्रष्टि को चाहिए l ऐसी ही है हमारी लोक संस्कृति, ऐसी ही हैं हमारी लोक कलायें l जो अनंत काल से हमारी संस्कृति की सबसे सशक्त अभिव्यक्ति हैं, सबसे पवित्र वाहक हैं l समाज में जो कुछ भी घटता है लोक ने उसके सकारात्मक पक्ष को ग्रहण किया और एक लम्बे चिंतन से उपजी अपनी सोच  में उसे ढालकर, समाज को वापस लौटा दिया – कभी गीत बनकर, कभी कोई लोक परम्परा बनकर, कभी किसी कहावत, किसी लोककथा के रूप में, तो कभी लोक मंचन, लोक नाट्य, लोक नृत्य के रूप में l लोक स्वीकार्यता है एक चिंतन की एक परम्परा के अनुशीलन की, जिसमें जीवन की शिक्षा है, समझ है, रस है, सरोकार है l इस्न्मे शास्त्रीयता का कोई बंधन नहीं l मन की उन्मुक्त उड़ान है l

भारत की लोक संस्कृति इसकी प्राण वायु है l अपनी इसी प्राणवायु को आधुनिकता के साथ कदम से कदम मिलाकर चलाने की अत्यंत आवश्यकता है l आवश्यकता है कि लोक के परम्परागत गुणों को आज के साथ समन्वित करते हुए आगे ले चला जाए – इसी आवश्यकता  को ध्यान में रखते हुए भारतीय लोक कलाओं, लोक परम्पराओं, धरोहरों और लोक साहित्य के संवर्धन, संरक्षण, प्रचार प्रसार एवं उत्कर्ष के लिए भारत के मूर्धन्य कलाकारों के दिशा निर्देशन में सामाजिक संस्था  “सोनचिरैया” की स्थापना की गयी हुई l

8 नवम्बर 2011 को उत्तरप्रदेश के तत्कालीन माननीय राज्यपाल श्री बी. एल. जोशी ने सोनचिरैया  को लोक को समर्पित किया l देश की सुविख्यात गायिका एवं पदमविभूषण गिरिजा देवी जी आजीवन “सोनचिरैया” की संस्थापक अध्यक्षा रही l वर्तमान में, लोक अध्येयता डॉ. विद्याबिंदु सिंह संस्था की अध्यक्षा हैं, एवं सुविख्यात लोक गायिका पदमश्री, मालिनी अवस्थी संस्था की संस्थापक सचिव हैं l संस्था के साथ कलाक्षेत्र की अनेक विभूतियाँ भी जुडी हुई हैं l 

सोनचिरैया संस्था द्वारा देश में पहली बार महिला लोक कलाकारों के लिए एक राष्ट्रीय पुरूस्कार “लोक निर्मला” का आरम्भ  किया किया, जो गत 2 वर्षों से उत्तरप्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथों द्वारा प्रदान किया जा रहा है l  यह सम्मान पदमविभूषण तीजनबाई जी एवं कालबेलिया कलाकार पदमश्री गुलाबो को प्रदान किया गया है l  विगत दस वर्षों से सोनचिरैया भारत की विभिन्न लोक कलाओं के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए अनवरत कार्य कर रही है l  देशभर के विभिन्न अंचलों में कलाकारों के साथ लोक कलाओं की पुनर्स्थापना के लिए अनेक प्रयास अनवरत चल रहे हैं l दूर सुदूर ग्रामीण अंचलों में अनेक कार्यशालाओं, कार्यक्रमों. आयोजनों और सेमीनार के माध्यम से लोककलाओं को आज के समय की प्रासंगिकता के साथ समाज और विशेषकर युवाओं के सामने लाया जा रहा है l

देश भर के लोक रंग को दुनिया के सामने नए कलेवर के साथ प्रस्तुत करने की बड़ी योजना पर भी काम चल रहा है l

आप कोई सवाल पूछना चाहते हैं?

info@sonchiraiya.com 

हमारे साथ जुड़िये

© 2021 – SonChiraiya. All rights reserved.

Carefully crafted by Ginger Domain

देशज अमृतगीत प्रतियोगिता

X